उम्मीद है, शब्-ए-उल्फत गुज़री होगी, खुशनुमा ख्वाब संजोते
सहर की सर्द धुंध में किरण-ए-आफताब न देख पाते, गर हम न होते
----------------------------------------------------------------------
गुजर जाता है वक्त यूँ ही उनकी राह तकते
बीत जाते हैं लम्हें यूँ ही हर आहट पर चौंकते
उन्हें भुला, चल भी पड़े अपनी राह हम अगर
कसक-ए-मोहब्बत न मिटेगी एक भी सांस रहते
----------------------------------------------------------------------
तमन्नओं से महकता है ये तन्हा आलम
वरना हम तो कब के दम तोड़ चुके होते
----------------------------------------------------------------------
हर पल उनकी यादों में जी कर, हर पल, पल पल कर बीता
रोक पाते सुइयों को गर, हर पल होता, पल पल उन संग बीता
----------------------------------------------------------------------
सुर्ख हम भी ओढ़े थे, सुर्ख वो भी ओढें थीं, उसी काफिर के नाम का
फर्क था सिर्फ, सादी सूती चादर, और रेशम पर गोटे के काम का
----------------------------------------------------------------------
रोज नींद पलकों पर दस्तक देती है,
रोज तेरे आगोश की तम्मना होती है,
आँखें मुंदने को होती हैं जैसे ही,
रोज तेरी महक एक पल को सांस रोक देती है...
----------------------------------------------------------------------
पलकों पर तेरा अक्स है, लब पर नाम तेरा
आगोश में ले सकते नहीं तुम्हें हम कभी
ख़्वाबों की दुनिया है ये, यहाँ नज़रों से इबादत होती है
----------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment