Thursday, January 10

आईना



आज फिर आईने ने पूछा मुझसे
तेरी पलकों पर थमी नमी सी क्यों है...
जिस चाहत में खुद को भुला दिया
उसी चाहत में आज कमी सी क्यों है...

आज फिर आईने ने पूछा मुझसे
तेरी मुस्कराहट में रंजिश सी क्यों है...
जिस चाहत के लिए रूह को दफना दिया
उसी चाहत से आज रवानगी सी क्यों है...

आज फिर आईने ने पूछा मुझसे
तेरी जुल्फों के साये यूँ सन्न से क्यों हैं...
जिस चाहत को समाये थे आगोश में
वही चाहत आज परायी सी क्यों हैं...


आज फिर आईने ने पूछा मुझसे
तेरी निगाहों में एक जुस्तजू सी क्यों है...
जिस चाहत को बसाए थे पलकों पर
उसी चाहत से आज यूँ बेरुखी सी क्यों है...





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