Friday, January 11

तन्हाई



हम अपनी तन्हाइयों को बहलाने मोहब्बत तलाशने निकले थे
पर कमबख्त मोहब्बत भी ऐसी मिली, के और तन्हा कर गयी...

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तन्हाई का स्याह दामन ओढ़े, मोहब्बत उनसे हम करते रहे 
अक्स दिखला दें फना होने से पहले, हर पल यही आरज़ू करते रहे... 

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जी रहे हैं दफ़न कर राज़-ए-उल्फत, तनहा दिल की स्याह गहराइयों में
न इल्म था इश्क कर उनसे, गुजरेंगी शाम-ओ-सहर यूँ तन्हाईयों में...

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लोग सवाल करते हैं, कि हमारी मंद मुस्कराहट के राज़ क्या हैं
कैसे बताएं उन्हें, के हमारी तन्हाइयों के अलफ़ाज़ दफ़न वहां हैं...

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तन्हाइयों का सन्नाटा, यूँ पसरा ज़िन्दगी की राहों पर 
के परेशान हो, हमारा साया भी छोड़ चला यह डगर...

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रह रह उनके आने का गुमान होता है,
हर आहट में उनका फरमान सा होता है,
खामोश फिजाओं में सरसराती है सर्द हवा,
तन्हाइयों में भी उनके आगोश का एहसास होता है...  

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महकते हैं साए आज भी उनकी खुशबुओं से, 
लहकते हैं अरमां आज भी उनकी आरजूओं से,
मुस्कुराहटों का हमारी कोई हिसाब नहीं ज़ालिम, 
के गहरा है रिश्ता इनका सौगात-ए-इश्क की तन्हाइयों से...

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जुर्म-ए-मोहब्बत का इलज़ाम लगा, न वो हमें रुसवा कर सके,
पैगामे-ए-इश्क को हमारे ठुकरा, न वो हमें तनहा कर सके,
उनकी खूबसूरत यादों के साए साथ निभाएंगे ताउम्र,  
निगाहें फेर कर भी, न वो तन्हाइयों से हमारा दामन भर सके 

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साज़-ए-मोहब्बत हाथों में थामे बैठे हैं,  
तार झनझनाते है, सुर सही सजते नहीं, 
जाने क्या है राज़-ए-ज़िन्दगी का नगमा,
या ये है के तन्हाइयों में साज़ बजते नहीं...  











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