Wednesday, January 16

अधूरे हम



जाने कैसी थी वो वस्ल-ए-यार  
अधूरा रहा दिन, अधूरी थी रात 
जाने कब मिल बिछड़ गए दिल 
अधूरे रहे ख़याल, अधूरे रहे जज़्बात

हौले हौले पलकों से छलके आंसू 
अधूरे रहे अफ़साने, अधूरे रहे प्रण
आह-ए-दिल लबों पर थम गयी
अधूरे रहे लफ्ज़, अधूरा रहा कण कण

मई की लू में सर्द हुई मुस्कराहट यूँ
अधूरे रहे शिकवे, अधूरी रही हर बात
आगोश में गुज़ारे पल हुए पराये यूँ 
अधूरे रहे अरमां, अधूरी रही कायनात 

शब् के स्याह दामन में खोये वो पल
अधूरा था चाँद, अधूरी रही चाँदनी
हुआ यह दिल छलनी कुछ इस कदर 
अधूरी रही सांसें, अधूरी रही जिंदगानी



फासले हुए कुछ यूँ दरमियान
अधूरा रहा प्यार, अधूरा रहा एहम
ताल्लुक-ए-रूह रहा कायम फिर भी
अधूरी थी मैं, अधूरे थे वो, अधूरे थे हम!! 






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