Tuesday, January 8

शायद



समेट लो इन मुस्कुराहटों को 

जाने ये खनखनाहट कल हो न हो 
हुए सजे कहकहे लबों पर कल अगर 
जाने निगाहों में उस हंसी का अक्स हो न हो 

समेट लो लबों से झरते ये मोती 

जाने ये सीप कल पास हो न हो
हुई भी ये सीप बैहर तले कल अगर
जाने पिरोने के लिए सुईं और रेशम हो न हो

समेट लो ये खुशियाँ दामन में 

जाने ये रेशमी चूनर कल हो न हो 
हुए भी थे राज़-ए-निहां कल अगर 
जाने हिजाब-ए-इश्क ओढ़े हमकदम हो न हो

समेट लो प्यार की फुहारों को 

जाने ये बौछारें कल हों न हों 
हुए थे बुलबुलों में कल शामिल अगर  
जाने फिर कभी वो महकता आलम हो न हो   

समेट लो इन हसीन पलों को
जाने ये लम्हें कल हों न हों 
हुए भी ये लम्हें कल साथ अगर 
जाने उन रूमानी पलों में हम शामिल हों न हों

समेट लो इन यादों को निगाहों में 
जाने ये चिलमन कल हो न हो 
हुई तब ये पलकें खुली भी अगर 
जाने इस तड़पते ज़हन में सांसें बरकरार हों न हों 




  
राज़-ए-निहां = Hidden Secrets
हिजाब-ए-इश्क = Veil of Love






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