Sunday, January 13

पनाह



हमारी पलकों से ढुलकते ये तन्हाँ आंसू,
खामोशी से एक पैगाम उन्हें दिया चाहते हैं

मोहब्बत करते हैं हम उनसे बेइन्तेहाँ मगर,
सरेआम शिकायत वो उनसे किया चाहते हैं

लख्त किया है मोहब्बत-आमेज़ दिल को इस कदर
दिल-खराश खामोश आहों को उन्हें सुनाया चाहते हैं 

उनका सबब-ए-रुसवाई टटोलते हैं हर पल ज़हन में 
धकेल हमें तन्हाइयों में जाने क्या हासिल किया चाहते हैं  

सवाल होगा, "मुद्दतों बाद शिकवा-ए-जौर के मायने हैं क्या?"
जवाब होगा, "मुद्दतों बाद फिर उनके ख़्वाबों में पनाह चाहते हैं!!"







मोहब्बत-आमेज़ = Loving
दिल-खराश = Heart Rending
सबब-ए-रुसवाई = Reason for Humiliation 
शिकवा-ए-जौर = Complaint of Torture

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