दिवाली की खुशियाँ दुगनी होती
गर तुम हाथ थाम लेते...
हंसी में एक खनखनाहट होती
गर तुम हाथ थाम लेते...
फूलों की महक से सांसें महकती
गर तुम हाथ थाम लेते...
आरज़ू ज़हन में मंद मंद मुस्काती
गर तुम हाथ थाम लेते...
गुजिया का स्वाद दुगुना होता
गर तुम हाथ थाम लेते...
श्रृंगार का रस सतरंगी होता
गर तुम हाथ थाम लेते...
दीयों के उजाले निगाहों में टिमटिमाते
गर तुम हाथ थाम लेते...
सितारों भरे दामन में होती सौगातें
गर तुम हाथ थाम लेते...
बाहों में गुज़रती शाम-ओ-सहर हमारी
गर तुम हाथ थाम लेते...
ख़्वाबों की ताबीर होती इबादत हमारी
गर तुम हाथ थाम लेते...
मजमे में तनहा खड़े न राह तक रहे होते
गर तुम हाथ थाम लेते...
सितारों के बीच खोया चाँद न ढूंढ रहे होते
गर तुम हाथ थाम लेते...
दिवाली की खुशियाँ दुगनी होती
गर तुम हाथ थाम लेते...
हंसी में एक खनखनाहट होती
गर तुम हाथ थाम लेते...
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