Friday, November 23

काश



ख्वाईशें कुछ ऐसी
अरमान कुछ ऐसे 
मंजिलें कुछ ऐसी 
ख्वाब कुछ ऐसे
के कुछ समझ न पाए हम

बातें कुछ ऐसी 
इशारे कुछ ऐसे 
राहें कुछ ऐसी 
मुकाम कुछ ऐसे
के कुछ समझ न पाए हम

क्या है ऐसा तुम्हारी इन बातों में 
जो हमें बेचैन करे जाता है 
क्या है ऐसा तुम्हारे आगोश में
जो एक प्यास जगा जाता है 
क्या है ऐसा तुम्हारी मुस्कराहट में
जो हमारी निगाहों में अक्स बना जाता है
क्या है ऐसा तुम्हारी हंसी में
जो हमारी हंसी को खनखना जाता है 

समझ नहीं आता
किस दौर से गुज़र रहे हैं 
समझ नहीं आता
ज़िन्दगी से क्या चाह रहे हैं 
समझ नहीं आता
क्यों इन राहों को तकते हैं 
समझ नहीं आता
क्यों एक आवाज़ को तरसते हैं 
समझ नहीं आता
क्यों नए रिश्ते नहीं बना पाते हैं 
समझ नहीं आता
क्यों किसी को चाहने से डरते हैं 

सुलझाना चाहते हैं 
बहुत कुछ है जो दरमियान
समझना चाहते हैं 
नया है जो हमारे दरमियान
समझाना चाहते हैं 
जो झिझक, डर है दरमियान 
कहना चाहते हैं
साथ दो कुछ समय इस दरमियान 

क्या कहें अब तुमसे 
क्या कहें अब खुद से 
काश के हम समझ पाते 
काश के हम समझा पाते 


काश..........



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