Saturday, November 3

कफ़न



खामोश लबों की जुबां काश वो समझ पाते
झुकी पलकों की तड़प काश वो समझ पाते
कफ़न-ए-गैरत ओढ़े इन्तेज़ार करते रहे 
तन्हा दिल की खामोश कसक काश वो समझ पाते 

अनकहे लफ़्ज़ों की जुबां काश वो समझ पाते
पलकों पर थमे अश्कों की तड़प काश वो समझ पाते
कफ़न-ए-हया ओढ़े इन्तेज़ार करते रहे 
ज़ेहन में सुलगती अनकही चाहत काश वो समझ पाते 

लब-ए-ताश्ना की थरथराती जुबां काश वो समझ पाते
निगाहों से झलकती हसरत-ए-दीदार काश वो समझ पाते
कफ़न-ए-वक़ार ओढ़े इन्तेज़ार करते रहे 
अपने ख्वाबिदा अक्स की एहमियत काश वो समझ पाते 

गुमसुम कसीदे की जुबां काश वो समझ पाते
मुंदी हुई आँखों की तड़प काश वो समझ पाते
कफ़न-ए-कज़ा ओढ़े इन्तेज़ार करते रहे 
साँसों में बसी दिल-खराश आह काश वो समझ पाते 



कफ़न-ऐ-गैरत = Shroud of Self Respect
कसक = Ache
कफ़न-ऐ-हया = Shroud of Shyness
लब-ए-ताश्ना = Thirsty Lips
हसरत-ए-दीदार = Longing, Yearning to See
कफ़न-ऐ-वक़ार = Shroud of Solemnity
ख्वाबिदा = Existing In Dreams
अक्स = Reflection
एहमियत = Importance
कसीदा = Poem
कफ़न-ऐ-कज़ा = Shroud of Destiny
दिल-खराश = Heart Rending




No comments:

Post a Comment