Friday, November 23

धुंध



अक्सर याद आया करती थीं हमें
बाईस साल पुरानी कुछ धुंधली यादें
सफ़ेद चादर पर बिखरे वो तन्हाँ लम्हें
कमसिन उम्र के पड़ाव की वोह हसीन यादें

है हमें कुछ कुछ याद धुंधला सा हर एक पल
शायद ज़हन में हों तुम्हारे कुछ और भी यादें
एक अरसे बाद मिल लगा लौट आये वही पल
आगोश में लिया तुमने जो ताज़ा हुईं वो खोयी यादें

धुंधला सा याद है वो पागलपन, वोह नटखट मुस्कुराहटें
दफ्तर, दोस्त के घर में जन्मीं हमारे जहन में बसी यादें
रिश्ता था क्या तब, नयी हैं आज ये शरमाई सी आहटें
तज्कीरह करो, करो ज़िक्र उनका, बसी हैं जहन में तुम्हारे जो यादें    

ज़िन्दगी की राहों पर न थी किसी के होने की हसरत
लिखी थी शायद तुम्हारे आगोश में बनाना कुछ नयी यादें
नज़रों में तुम्हारी देखी हैं हमने एक अलग सी हसरत
खुशनुमा हों अब पल, आरज़ू है न बनें अब कोई दिल-खराश यादें


न मिले, न जान पाए तुम्हें इन बीते अरसों में
जिए, लिए रूह में तुम्हारी कुछ भीनी धुंधली सी यादें
तुम्हारे आगोश में बीते कल के लम्हों की उस पुर्गोश कशिश में
बसी थी आज भी बरसों पुरानी उन कमसिन आतिशीं लम्हों की यादें 





No comments:

Post a Comment