Monday, November 5

रंज



दफन कर ये रूह-ए-रंजीदा, वो अपनी खुशियाँ पाने चले हैं 
इलज़ाम-ए-रकीब-ए-मोहब्बत लगा, रूह छलनी कर चले हैं 
आखिरश काश मुड़ देखते एक मर्तबा फना होने से पहले 
मय्यत सजी है उसी दोराहे, जहां अक्स अपना स्याह कर चले हैं

दफन कर ये दिल-ए-कस्ता, वो अपना आशियाँ बसाने चले हैं
लगा इलज़ाम-ए-बेवफाई, हमारी अलाहेदाह मय्यत सजाके चले हैं
आखिरश काश नफरत नहीं सौगातों से सजाते चादर
बेदाग़ हमारे दामन पर जिसका सुर्ख कफन ओढ़ाके चले हैं





दिल-ए-कस्ता = Wounded Heart
आखिरश = In the end
अलाहेदाह = Isolated, Solitary, Cut Off
रूह-ए-रंजीदा = Soul filled with sadness
इलज़ाम-ए-रकीब-ए-मोहब्बत = Blamed for being an enemy of love





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