Monday, November 19

एक अध्याय



उनका आना

बीती बातों को समेट कर
मिल बैठ बातें करना
जीवन की राहों में
कुछ कदम संग चलना
यादें ताज़ा कर
दुखों खुशियों का बांटना
कुछ पल करीब हो
खुशियों को पाना
दोस्ती के दायरों को पार कर
एक दूजे में लीन होना
सर्व समर्पण कर
समर्थन और प्यार देना
विचारों की निष्कपटता
के बीच उसका होना
शब्दों के तीरों से भेद
आत्मा को छलनी करना
क्रोध और हताशा में
सिसकती काया को चीर देना
सफाई में न कुछ कहने दिया
कहा सुनी में न ही कुछ कहा सुना
दोस्ती के अर्थ का अनर्थ कर
भावनाओं की अवमानना करना
प्यार भरे दिल को ठोकर मार
अपना जीवन यापन करना
आशीर्वाद के लायक कुछ किया नहीं
और बस में नहीं तुम्हे अभिशाप देना 
सिसक रहे हैं आज भी हर पल यहाँ
तुम्हारी दी नफरत में झुलसते हुए जीना
साथ बीते पल नकारा कर 
हमें चूर कर... आखिरकार




उनका जाना...



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