चुप्पी...
हमारे हर्फों की
उनके लफ़्ज़ों की
चुप्पी...
हमारी तमन्नाओं की
उनके फलसफों की
चुप्पी...
हमारी साँसों की
उनकी निगाहों की
चुप्पी...
हमारी बेचैनी की
उनकी खामोशी की
चुप्पी...
हमारी इबादत की
उनके जूनून की
चुप्पी...
हमारी इबारत की
उनकी शायरी की
लफ़्ज़ों की बंदगी
किया करते थे वो कभी
खोयी है उनके ख्यालों की
इबारत कुछ दिनों से अभी
जानते नहीं क्या है
सबब-ए-चुप्पी का सार
जानते नहीं क्या है मंज़र
इस चुप्पी के उस पार
काश न हो ये चुप्पी का कयास
के शायरी नहीं हर किसी का मर्ज़...
जानते हो तुम चुप्पी नहीं है
इस परस्तार की इबादत का क़र्ज़...
इंतज़ार-ए-कलाम रहेगा हर पल हमें
इश्क हो या फलसफा, करो कुछ भी दिल से अर्ज़...
हमारी इबारत की
उनकी शायरी की
लफ़्ज़ों की बंदगी
किया करते थे वो कभी
खोयी है उनके ख्यालों की
इबारत कुछ दिनों से अभी

सबब-ए-चुप्पी का सार
जानते नहीं क्या है मंज़र
इस चुप्पी के उस पार
काश न हो ये चुप्पी का कयास
के शायरी नहीं हर किसी का मर्ज़...
जानते हो तुम चुप्पी नहीं है
इस परस्तार की इबादत का क़र्ज़...
इंतज़ार-ए-कलाम रहेगा हर पल हमें
इश्क हो या फलसफा, करो कुछ भी दिल से अर्ज़...
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