चाँद-निशा का मेल है अनोखा, शांति और सुकून भरा
ये फूल करेंगे तह-ऐ-दिल से इबादत, हिफाज़त इसकी
सुन्हेरी रूह का न करना तज्कीरह ज़िक्र किसी से कभी
इल्म हुआ हमें इसका अगर, होगा न हमसे ज़िष्त और कोई
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काश के उस चाँद की रोशनी हमें भी रोशन करती
काश के ज़ुल्मत-ए-शब इस कदर स्याह न होती
काश के एक तारा ही टिमटिमा रोशन कर देता
तो दस्तक-ए-सहर-ए-नशात यूँ खौफ-जदा न होती
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ताबिंदा निशा में रोशन चाँद को पाने की आस न रही
ताल-आब-ऐ-चश्म में झलके चाँद को छूने की प्यास न रही
यादों, सौगातों, लम्हों, लफ़्ज़ों को संजो कर रखेंगे हम ताउम्र
राह-ए-इल्तिफात में उम्मीद की है एक यही नफस-ए-रूह बस रही
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