Wednesday, November 28

चाँद-निशा



चाँद-निशा का मेल है अनोखा, शांति और सुकून भरा
ये फूल करेंगे तह-ऐ-दिल से इबादत, हिफाज़त इसकी
सुन्हेरी रूह का न करना तज्कीरह ज़िक्र किसी से कभी
इल्म हुआ हमें इसका अगर, होगा न हमसे ज़िष्त और कोई

--------------------------------------------------------------

काश के उस चाँद की रोशनी हमें भी रोशन करती 
काश के ज़ुल्मत-ए-शब इस कदर स्याह न होती 
काश के एक तारा ही टिमटिमा रोशन कर देता 
तो दस्तक-ए-सहर-ए-नशात यूँ खौफ-जदा न होती

--------------------------------------------------------------


ताबिंदा निशा में रोशन चाँद को पाने की आस न रही
ताल-आब-ऐ-चश्म में झलके चाँद को छूने की प्यास न रही
यादों, सौगातों, लम्हों, लफ़्ज़ों को संजो कर रखेंगे हम ताउम्र   
राह-ए-इल्तिफात में उम्मीद की है एक यही नफस-ए-रूह बस रही    

--------------------------------------------------------------





No comments:

Post a Comment